Sarvajanik Karyakram Date 26th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 08 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आप लोग परमात्मा पर विश्वास करे या न करे, इससे परमात्मा का होना या न होना निर्भर नहीं है। अगर हम आपसे कितना भी कहे की परमात्मा है, और आप उसका विश्वास भी कर ले तो भी उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। चाहे आप अविश्वास करें, तो भी आप अज्ञान में ही अविश्वास कर रहे हैं और अगर आप विश्वास कर रहे हैं, तब भी आप अज्ञान में ही कर रहे हैं। उसको पाये बगैर विश्वास कर लेना भी अज्ञान ही होता है और उस पर अविश्वास कर लेना भी अज्ञान ही होता है। इसलिये जब मैं इस विषय पे बातचीत कर रही हूँ, आपको एक खुले दिमाग से, जैसे कि एक साइंटिस्ट होता है, एक शोधक होता है उनको कुछ भी पता नहीं है। उसकी प्रिकन्सीव्ड आइडिया नहीं है, जिससे पहले से कुछ कितनी किताबें मनुष्यों ने लिख मारी। एक अनन्त सागर सा है। उस में से न जाने कितने ही लोगों ने असत्य ही सोच के रखा है। इस तरह से आपको बैठना चाहिये। इस विषय पे न जाने लिखा है। लेकिन सत्य और असत्य की पहचान क्या है? सत्य की पहचान ये है, वो हर हालत .... (अस्पष्ट) हो जाता है और किसी भी कसौटी पर वो झूठा साबित नहीं होता है, वही सत्य है। जो हम आपके सामने अभी बातचीत करेंगे, या जो कुछ भी आपको बतायेंगे, इसको एक साइंटिस्ट की तरह सुनने का मतलब ही होता है कि आपके सामने हायपोथिसिस हम रख रहे हैं। एक विचार रख रहे हैं। उस विचार को बाद में हम सिद्ध कर के दिखा सकते हैं और जो यहाँ लोग पार बैठे हैं, जिन्होंने हमारे काम देखे हैं, वो जानते हैं कि ये बात सिद्ध होती है। लेकिन दिमाग खुला रखें । ये बहुत जरूरी है। क्योंकि आप में से बहुत से लोग ऐसे हैं कि इस विषय में बहुत कुछ पढ़ चुके हैं। सीखने को तो कुछ भी नहीं लगता है। आपके पास अगर थोड़ा सा पैसा हो या कुछ आपके चेले मदद करने के लिये तैयार हो, तो आप किताबों पे किताबें लिख के चले जा सकते हैं। और आपको सत्य की कोई भी खोज करना जरूरी नहीं । धर्म के मामले में पूछने वाला कौन है कि तुमने ऐसा क्यों लिखा ? धर्म पे तो चाहे जो भी चाहे बोल सकता है। हिटलर जैसा आदमी भी धर्म पे बोलता था और नेपोलियन जैसा आदमी भी बोलता था। क्योंकि (अस्पष्ट) में, उनको पकड़ने वाला कायदा अभी बना कहाँ है? जिनको जो चाहे धर्म के नाम पे बेचिये उनको जेल में डालने वाला कायदा बना कहाँ है? लेकिन आप सत्य के ही पुजारी हैं और आप सत्य को ही जानना चाहते है, तो हमारी भी बात पर यकीन आपको पूरी तरह से बिल्कुल नहीं करना चाहिये । जब तक आप ये न देखे कि जो हम कह रहे हैं वो वास्तविक ही है। आप मनुष्य हैं और अपनी में खड़े रहना चाहिये। ये नहीं की जो आपको कुछ कह गये, या लिख गये या बता दे वो आपमें छा जायें । ये मनुष्य का लक्षण बिल्कुल नहीं है । जो मनुष्य स्वतंत्रता के सीढ़ी पर खड़ा हो कर के परमात्मा को ये भी कहता है कि, 'तू नहीं है।' वो कहीं अधिक अच्छा है, उस आदमी से, परवशता में परमात्मा को कहता है कि, 'हाँ, तू है।' सहजयोग में परतंत्र आदमी के साथ हम कुछ नहीं कर सकते । कल मैंने आपसे यही कहा था, कि सहजयोग में आपकी अबोधिता, इनोसेन्स जरूरी है, लेकिन स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है। और इसलिये स्वतंत्र बुद्धि से आप बैठे। न तो हमारा नकार हो और न ही हमारा स्वीकार हो, जब तक आप उसको पा न ले। ন Original Transcript : Hindi भी हम बात कह रहे हैं वो जब तक आपका सेल्फ रियलाइझेशन नहीं हो जाता है तब तक पता ही जो कुछ नहीं हो सकती। आप जान ही नहीं सकते उस बात को, जिसे हम कह रहे हैं। जैसे कि आपका कनेक्शन नहीं लगता है, आप कोई भी टेलिफोन करिये उसका कोई अर्थ ही नहीं होता है। कम से कम, कम से कम मनुष्य को धर्म के बारे में जानना होता है, तो रियलाइझेशन कम से कम हो । उसके पहले मनुष्य योग्य नहीं है कि धर्म को जाने। जैसे अपने देश में पहले कहते थे कि किसी ब्राह्मणही धर्म को जाने। ब्राह्मण का अर्थ ही वो होता था कि जो रियलाइज्ड है। हर एक आदमी ब्राह्मण नहीं होता है। आज मैंने आपसे कहा था, कि मैं सृष्टि, स्रष्टा, ब्रह्मा आदि बातों की चर्चा करूंगी। पहले भी मैंने बताया हुआ है, कि जैसे कोई एक जीव होता है और उसके अन्दर जो कुछ भी उसी से पैदा होने वाला है उस सब का नक्शा होता है। उसी तरह आप एक ब्रह्म स्वरूप का विचार करे, कि एक ब्रह्म स्वरूप ही वर्तमान है। जिसका आदि नहीं और अंत नहीं। जो अनादि है ऐसा एक ब्रह्म बीज स्वरूप में घटित आप अपने चित्त में धरे। उस ब्रह्म की स्थिति एक साधारण जीव जैसी है, जो कि सृजन शक्ति से स्पंदित है। जैसे कि एक छोटा सा बीज होता है। उसके अन्दर उसकी जर्मिनेटिंग पॉवर या उसकी सृजन शक्ति होती है। उसी तरह से इस ब्रह्म में भी अपनी सृजन शक्ति है। और जब वो पहले ही फूट पड़ता है, पहले ही उसमें उसका स्पंदन होता है, पहले ही जब वो स्पंदित हो जाता है, उसी वक्त प्रणव की स्थापना होती है। उस शक्ति की स्थापना होती है। और वो शक्ति उस बीज से अलग हट कर के अपने अहंकार में स्थापित हो कर के सारी सृष्टि की रचना करती है और वो जो बीज है वो ईश्वर स्वरूप हो कर के और उसका खेल देख रहा है। जैसे कि एक टैलिविजन रखा हुआ है उसे वो देख रहा है। उसका पसन्द खेल आ गया तो वो देख रहा है और उसे नापसन्द आ गया तो वो ऑफ़ कर देता है। इसी ईश्वर को हमारे शास्त्रों में शिव के नाम से जानते हैं और उस शक्ति को शिबानी कहते हैं। जिसे हम महाशिव कर के पुकारते हैं। उसी को लोग ईश्वर, फ़ादर, गॉड, परमात्मा और जिसे हम शक्ति कहते हैं उसी को लोग होली घोस्ट, रूह आदि अनेक शब्दों से जानते हैं। यही शक्ति सारा सृजन करती है। यही शक्ति जब सृजन करने लग जाती है, उस वक्त ये अपने ढंग से सृजित होता है। उसका अपना एक ढंग होता है। मानव दशा में आने पर जिसे की एक शक्ति जैसे मैंने कल बताया था, कि एक जड़ तत्त्व है और एक चैतन्य तत्त्व है। दो तत्त्वों से ये सारी सृष्टि बनती है। चैतन्य त्त्व जब जड़ त्त्व से काम करता है, तब ये सृष्टि का सृजन होता है और सारी सृष्टि तैयार होती है। करते करते मनुष्य दशा पे हम आ जाते हैं। विस्तृत रूप से तो मैं बहुत बार बता चुकी हूँ। लेकिन आज विशेषत: कुण्डलिनी पर आना है। इसलिये मैं जरा जल्दी में वहाँ पहुँचना चाहती हूँ। मनुष्य में ये जब जड़ शक्ति, छोटे से बच्चे के रूप में माँ के गर्भ में दो-तीन महिने की दशा में पहिली मर्तबा स्पंदित होती है, उस वक्त उसके हृदय में जो पहला स्पंदन होता है, वो पहला स्पंदन उस व्यक्ति के हृदय में होता है, वो ईश्वर का होता है। इसी को हम आत्मा कहते हैं। परमात्मा आत्मास्वरूप हमारे हृदय में पहली बार और शक्ति जो है वो हमारे सर के इस तालु प्रदेश से चीर कर के अन्दर हमारे पृष्ठ भाग में एक स्पाइनल कॉर्ड है, जो रीढ़ की हड्डी है, उस से गुज़र के और त्रिकोणाकार उस अस्थि में, अस्थिपूर्ण में जा कर के बैठती है। ये बैठती है या नहीं, वहाँ होती है या नहीं? उसकी क्या स्थिति है, वास्तविकता है या नहीं? आप कह रही थी तो माना। बिल्कुल न मानिये। लेकिन मैं आपको दिखा सकती हूँ। आप चाहे पार हो न हो, अगर आपके पास आँखें हैं आप अँधे नहीं हैं, तो आप देख सकते हैं कि वहाँ पर कुण्डलिनी के नाम से स्थित है और जब कोई मेरे पैर पे आता है तो फौरन 3 Original Transcript : Hindi वहाँ पे स्पंदन होने लगता है, जहाँ पर की त्रिकोणाकार अस्थि है। त्रिकोणाकार अस्थि में स्पंदन होने की कोई बात नहीं है क्योंकि वहाँ हृदय नहीं है। वहाँ पे हृदय नहीं है, लेकिन वहाँ आपको दिखाई देता है कि उस आदमी का अगर कोई कपड़ा पहने हो , तो वो ऊपर-नीचे हिलता है और कभी कभी बहुत जोर से हिलता है । उसके बाद आप जब देखते है, कि जब वो चढ़ती है, ऊपर में, ऊपर में चढ़ते वक्त वो किसी किसी जगह रुकते हुए, स्पंदित होती है, और किसी-किसी जगह इसका स्पंदन इतने जोर से दिखाई देता है, कि जैसे हृदय चक्र जहाँ पीछे में है, वहाँ पर आपको ऐसा लगता है कि कपड़ा उठ रहा है, गिर रहा है, कंपड़ा उठ रहा है, गिर रहा है। इसलिये हम लोगों ने प्रयोग किये हैं, एक्स्परिमेंट किये हैं, जो लोगों ने अपने आँखों से साक्षात देखा हुआ है। ये लोग कहते हैं कि, कुण्डलिनी कोई चीज़ ही नहीं होती। कुण्डलिनी पे विश्वास ही नहीं करते हैं। इनको चाहिये कि एक मर्तबा आ कर देखें कि कुण्डलिनी नाम की चीज़ आपके अन्दर में है, शक्ति नाम की चीज़ अपने अन्दर में है और वो आपके त्रिकोणाकार अस्थि में है। इधर-उधर नहीं है। इसका सामने साक्षात हो सकता है। आप इन आँखों से, नेकेड आई से आप देख सकते हैं, कि कुण्डलिनी है। उसके बाद आप ये भी देखते हैं, कि धीरे-धीरे आपकी पीठ में ऐसा लगता है कि कभी कभी की चीज़ बह रही है। किसी किसी को तो सिर्फ हमें देखते ही साथ फटाकू के साथ ऐसा लगता है कि कोई भी ... (अस्पष्ट)। या उनके पूर्वजन्मों के पुण्यों का तरीका है । जो उन्होंने धंदे इकट्ठे किये हैं कि एकदम से साक्षात् हो जाते हैं, खट् से कुण्डलिनी खोल देते हैं। और किसी किसी में रुकावट सी लगती है। धीरे चढ़ी, नीचे चढ़ गयी, किसी को थोड़ी सी गर्मी महसूस हो गयी। इसकी वजह ये है कि आपके अन्दर जो कुण्डलिनी का मार्ग है, वो जैसे मैं आपको दिखा रही हूँ, इस तरह से .... प्रतीक है। जैसे कि एक इधर से गिर सकते हैं, एक इधर से गिर सकते हैं। ये देख रहे हैं न आप! ये दो और शक्तियाँ हमारे अन्दर हैं जो इड़ा और पिंगला हैं। इसके बारे में मैं कल बताऊंगी। ये किसी न किसी कारण से अपनी तरफ इस मार्ग से खींच लेती है। और इसीलिये ये मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और कुण्डलिनी ऊपर चढ़ नहीं पाती वो जा कर रुक जाती है, इस जगह जहाँ मार्ग रुकता है। ये कुण्डलिनी साक्षात् चैतन्य-स्वरूपिणी है। चैतन्य का अर्थ मैंने कल आपको बताया था कि चैतन्य सब जानता है। चैतन्य सब पहचानता है। इतना ही नहीं लेकिन संसार का सारा सृजन चैतन्य से होता है। और चैतन्य जो | है प्रेममय है। ये कुण्डलिनी भी प्रेमस्वरूपिणी आपकी अपनी माँ है। ये जरासा फर्क आ जाता है। जो आपकी अपनी माँ है, उसका और कोई बेटा नहीं है । वो आपके बारे में सबकुछ जानती है। जैसे कोई टेपरेकॉर्डर अपने अन्दर सब कुछ लिखे हुए है कि इस बच्चे में क्या दोष है? इसे क्या तकलीफ़ है? इसके शरीर में कौनसी पीडा है ? में कोई इसकी कौनसी वेदना है? इसने क्या क्या तकलीफ़ उठाई? ये साक्षात् में है। आजकल के मॉडर्न टाइम अगर कुण्डलिनी की बात करे तो लोग विश्वास नहीं करते। लेकिन इसी टाइम में जब कि आप साइन्स की इतनी बड़ी हज़ार पताका लगा कर घूम रहे हैं, तो क्षण आ गया है कि आपको फिर से धर्म के रास्ते की ओर अपनी नज़र उठा के देखना पड़ेगा। क्योंकि साइन्स समझ चुका है कि अभी तक हमने कुछ जाना ही नहीं । मेडिकल साइन्स में, कैन्सर, कैन्सर समझ ही नहीं आ रहे है किसी को क्या है। कैन्सर क्या चीज़ है किसी को समझ ही नहीं आ रहा है । जो लोग साइन्स की नाम पर डंके की चोट पर बड़ी शान से अहंकार दिखाते हैं, वो मुझे बता दें कि कैन्सर क्यों है? बड़े बड़े डॉक्टर होते हैं, वो नहीं बता पाएंगे । मैं बताती हूँ कि कैन्सर यही जो आपने कहा था कि खिंचाव, 4 Original Transcript : Hindi सिम्परथैटिक नर्वस सिस्टीम के खिंचाव से, ओवरोंक्टिविटी से होता है। और इसका इलाज सहजयोग के सिवाय कोई और है ही नहीं। आज जो मैं कह रही हूँ दस साल के बाद शायद लोग मान जायें । पर न जाने कितने लोग कैन्सर से खतम हो जाये। संसार अजीब है। कोई चीज़ का आप पता लगाईये। तो मानव का दिमाग ऐसा होता है, जो पता लगाता है, उसी को फाँसी चढ़ा दें। उसकी बात मत सुनो। लेकिन मरने के बाद मंदिर बनाएंगे और उसका गौरव करेंगे। आज मैं जिंदा आपके सामने बता रही हूँ कि कैन्सर किसी बीमारी का नाम है, जिसे मैं कहती हूँ कि ओवरोंक्टिविटी ऑफ द सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टीम तो ये डॉक्टर लोग सुनने के लिए तैयार नहीं। लेकिन एकाध डॉक्टर कैन्सर से बीमार पड़ जाए तो माताजी के शरण में आते हैं। हम तो रियलाइझेशन के पीछे में है, कैन्सर के पीछे में नहीं। लेकिन डॉक्टर लोग अगर आँख खोल के देखे और इसको समझने की कोशिश करें और इतना विचार न करें कि उनके पैसों का क्या होगा। तो वो स्वयं ही इस बीमारी का इलाज कर सकते हैं और लोगों को ठीक कर सकते हैं । इसलिये साइन्स से आप कुण्डलिनी के बारे में अगर पूछना चाहते हैं, तो मैं ये कहँगी कि आपके आँखों पर तो आपका विश्वास है या नहीं। अगर इतना विश्वास है तो आपकी आँखों से देख लीजिये कि किसी की पीठ की रीढ़ की हड्डी में अगर स्पंदन हो रहा है तो आखिर वो क्या है? और वो होने के बाद, आपके पूरे होश में अगर निर्विचारिता स्थापित हो रही है तो आखिर ऐसी कौन सी चीज़़ है कि जिससे आप निर्विचार हो सकते हैं । साइकोलॉजिस्ट कितने भी बड़े हो उनसे पूछ लीजिये कि आप निर्विचारिता हमारे अन्दर स्थापित कर सकते हैं ? आपका मन खिंचाव कर ले , लेकिन आपके होश में ही न बात साइलेन्स की और अन्दर शान्ति की बात है, वो अगर कर के दिखा दे तो हम मान जाएंगे कि आपका साइन्स बहुत बड़ा है। अन्दर की शान्ति आये बगैर हम बाहर की शान्ति ला नहीं सकते। लेकिन सारी साइकोलॉजी की किताबें खोल के आप सुन लीजिये और इन्ही साइकोलॉजिस्ट के पास जा के देखिये कि क्या ये शान्त हैं? ये क्या हमारा इलाज करेंगे! जो स्वयं ही इसके शिकार है, जिसके हम हैं। लेकिन कितनी भी बात कहँ, कैसे कैसे समझाऊँ कि बचो, कलियुग में ही बड़ा भारी उद्धार होने का समा आ गया है। और उसी के साथ पूरे ..... का भी पूरा इंतजाम है, क्योंकि जो ईश्वर सुपरवाईजर कर के बैठे हुए हैं, जो सर्वसाक्षी हैं, वो आपका स्विच ऑफ करने के लिये बड़े लालायित हैं। देख रहे हैं, कि खेल बनेगा तो जीत हमारी है और नहीं तो संहार है । आप देख ही रहे हैं कि संसार में किस तरह की चीज़ें आज खड़ी हो रही है। युद्ध है, गरीबी है, रुग्णावस्थायें हैं, देखा नहीं जाता। और इसका कोई ये कल्कि का जमाना है! और इस भी इलाज मनुष्य टाल नहीं सकता। कोई कहता है कि कम्युनिझम लाओ, कोई कहता है कि सोशलिझम लाओ। कोई कहता है कि फलाना लिझम लाओ। ये सब चलाने के लिये इस परम आनन्द की उपलब्धि हये बगैर, उन तारों को छेड़ने की शक्ति लिये बगैर आप कभी भी आनन्द पा ही नहीं सकते हैं और संतुष्ट तो आप हो ही नहीं सकते हैं । संतोष को परमात्मा के चरणों में मिल सकता है। लेकिन मैं जब परमात्मा की बात करती हूँ तो 'अहाहा, मनुष्य माताजी आ गयी रास्ते पर।' वहाँ तक तो लोग ठीक ठीक चलते हैं, जब मैं साइन्स की बात करती हूँ, पर जैसे ही मैंने परमात्मा की बात की, कि गये। इतना अहंकार है आदमी में। कितना अहंकारी हो गया है, अपने को समझता क्या है। ये परमात्मा जिसने हमें बनाया, इसने सारी सृष्टि की रचना की उसको हम चुनौती दे रहे हैं! आप है किस खेत की मूली। कल उखाड़ के फेंक दिये जाओगे। परमात्मा के नाम में अधर्म देख रहे हैं। सेक्स की बातें अगर 5 Original Transcript : Hindi परमात्मा के नाम में करियेगा तो आप बड़े धम्मात्मा कहलाये जाते हैं। कलियुग की भी हद होती है । परिसीमा के पाप में हम लोग वाकई डूब चुके है। साइन्स से अगर आप पाप धो कर दिखा सके, साइन्स से अगर आप प्यार बना कर दिखा सके, तो मैं साइन्स के सामने हार मानूंगी। लेकिन हमारा भाषण भी एक भाषण मात्र रह जाये, और कोई अनुभूति आपको न मिले, आप अगर हमारे रहते हुए भी कुछ न पाये, तो हमारा आना भी व्यर्थ हुआ और कहना भी व्यर्थ हुआ। ऐसा कलियुग का घोर, ऐसा अंध:कार हमारे सर पे छाया हुआ है, कि हम अपने आगे किसी को कुछ एक पाँव के धूल के बराबर भी ये सारी सृष्टि नहीं है। मेरी बात का आपको मैं यकीन दिलाना नहीं चाहती हैँ। लेकिन एक दिन इसका सोचता ही नहीं । | आपको मैं साक्षात् बनाऊंगी। पहले अपनी तैयारी कर लें। आज कल के नौजवान लड़के और आज कल का जो समाज तैयार हो रहा है, उसमें उतना ही बताया जाये। उनके सर में ये चीज़ नहीं घुसने वाली। इसका कारण ये है कि धर्म के नाम पे महा अधर्म खड़ा कर दिया। कुण्डलिनी की तो बात किसी ने की ही नहीं। कौन करता कुण्डलिनी की बात उस जमाने में। बिचारों ने कुछ कहा ही नहीं, उस पर भी क्रॉस पे चढ़ा दिया। कुण्डलिनी अन्दर साक्षात् है और उसका साक्षात् हो सकता है। और अगर आपको देखना हो तो आप आईये। और अगर नहीं देखना है, और अगर नहीं जानना है तो अज्ञान की जो जो तकलीफ़ें हैं उसे सहना ही होगा। पर एक विचार तो करना ही है कि आखिर हम कर क्या रहे हैं? हम दौड़ कहाँ रहे हैं? क्या पा रहे हैं? अपने ही अन्दर, अपने ही उस ....(अस्पष्ट) के अन्दर सारे देवता बसे हुए हैं। अब ये कहते ही, दिमाग में नहीं जाता, कि ऐसे कैसे माताजी कह रही हैं कि हमारे अन्दर देवता बसे हुए हैं? उसका भी आपको मैं प्रमाण देती हूँ। एक साहब थे, उनकी शिकायत है। वो हमारे पास आते हैं। बहुत दर्द होता है। एक दूसरी आती है, हमें बच्चे नहीं होते है। हमने कहा, 'अच्छा! तुम हमारी ओर हाथ करो।' देखते हैं कि कुण्डलिनी उनके स्वाधिष्ठान चक्र में बैठी हुई है। एक छोटा बच्चा बता देगा, कि यहाँ पर इस उँगली में हमें गर्मी आ रही है। जितने भी लोग बैठे हैं, आप लोग देखें, वो आँख बंद कर के बता दें कि इसी उँगली पर, इसी अंगुली पर हमें गर्मी आ रही है। इससे बढ़ के साइन्स और क्या हो सकता है कि सब के सब एक ही चीज़़ बतायें की इसमें हमें गर्मी आ रही है। मैं तुमसे नहीं बता रही हूँ। इससे पूछा कि साब, आपको बीमारी क्या है? 'हमारे पेट में बहुत दर्द होता है, तो किसी ने कहा हमें की शिकायत रहती है और किसी ने कहा हमारे बच्चे नहीं है।' सारे के सारे अेऑर्टिक प्लेक्सस जिसे कहते हैं, जो स्वाधिष्ठान चक्र से चालित है उसकी बिमारियाँ हैं और वो इस उँगली पर आप महसूस कर सकते हैं। अब इससे और ज्यादा प्रमाण में आपको क्या दूं! जो दो साल का बच्चा भी यही अँगूठा दिखायेगा और सब लोग यही अँगूठा दिखा कर कहेंगे, 'माँ, यहाँ पर।' और फिर जब मैं उस आदमी से कहती हैं कि, 'अच्छा तुम ब्रह्मदेव का और सरस्वती का नाम लो।' वैसे लेते ही वो खट्कन खतम हो गया और कहता है कि, 'माँ, मेरी तबियत ठीक हो गयी।' अब इससे भी ज्यादा कोई प्रमाण चाहिये। साक्षात् ब्रह्मदेव और सरस्वती वहाँ बैठे ही हये हैं। अगर नहीं बैठे हैं तो काम कैसे हो गये! और किसी भी नाम लीजियेगा होने नहीं वाला काम। अब इससे ज़्यादा और क्या प्रमाण देना चाहिये आप लोगों के सामने। इसको बुद्धिवादी कहे कि बुद्ढिवादी कहे, जो देखते हुये भी उस चीज़ को नहीं मानते। जिसके मूलाधार चक्र पे तकलीफ़ हो उसको यहाँ (हात) गर्मी आती है। अगर उसको बहुत जोर की बाधा हो, बाधा जिसे कहते है रुकावट या किसी किसी में भूतबाधा पर बैठता है, तब बहत जोर की गर्मी आती है, यहाँ Original Transcript : Hindi तक कि यहाँ ब्लिस्टर्स आ जाते हैं। बहुत से लोग अपने को भगवान आदि कह कर घूम रहे हैं, इनको तो छोड़िये, पर उनके शिष्यों पर भी, ब्लिस्टर्स आ जाते हैं हाथ में । हाथ जल गये हम लोगों के। उँगलियाँ जल गयी। सब की एक साथ उँगलियाँ जल गयी है। लेकिन .....(अस्पष्ट) दो साल की पार ही वो पैदा हुई है। वो भागती है सब लोगों से। एक ही उँगली पर सब के ही जलन आती है, एक ही उँगली पर सबसे जलन आ रही है, तो उसके आज्ञा चक्र पर पकड़ है। आज्ञा चक्र पे जो क्रॉस है उसपे ईसामसीह को लटका दिया और ईसामसीह वहाँ हैं, चाहे आप ईसाई हो, चाहे नहीं। इसका साक्षात् हमें आता है। बड़े आये हिन्दू बनने वाले और बड़े आये ईसाई बनने वाले। सब से द्वेष करने के तरीके सीखते हैं। कोई उनका तरीका सीखा है । सबके यहाँ पर अन्दर ईसामसीह का स्थान है और वही गणेशजी हैं। यदि साक्षात् मनुष्य स्वरूप प्रणव, इसकी पहचान में भी गणेशजी के भी बाप वही थे और ईसा के भी बाप हैं। लेकिन अगर कोई पागल आदमी हो, या जिसे भूतबाधा हो, जो मेंटली के रिसिपिएन्ट हो और वो अगर हमारे सामने आ जाये तब हम जो उनको मदद कर रहे हैं या उनके आज्ञा चक्र को छुड़ा रहे हैं। हम उससे अगर कहें कि तुम ईसामसीह का नाम लों। जीजस क्राईस्ट का नाम लो, खट् से खुल जायेगा आज्ञा। अब हम कैसे जानते हैं? | ये तो कोई प्रश्न नहीं हुआ, क्योंकि हम जानते हैं और वो होने पर भी, इस पर भी अगर आप लोग विश्वास नहीं करेंगे, की अलग अलग अपने चक्रों पर अलग अलग देवताओं का स्थान पहले से ही आदिशक्ति ने बनाया हुआ है। जब आप का नामोनिशान भी नहीं था और जो लोग आपस में लड़ रहे हैं, उनको भी पता होना चाहिये, कि आप आपस में जिनके लिये लड़ रहे है वो एक है, जैसे हम मोहम्मद साहब और गुरुनानक के लिये है कहते हैं। मोहम्मद साहब और गुरुनानक दोनो एक आदमी थे। उनकी एक पहचान थी। नानक जी के जीवन में ही हम आपको बता दें, की एक बार नानक जी लेटे थे, तो लोगों ने कहा कि, 'आप क्या मक्का की तरफ़, उधर में काबा है, उधर में आप अपने पाँव कर के क्यों लेटे हैं?' उन्होंने कहा, 'अच्छा, मैं पैर कर लेता, ये है काबा घूम गया।' काबा क्या है? मोहम्मद साहब की पाँव की धूल है और वही नानक साहब की भी है। दोनों एक ही आदमी है और उसकी पहचान हम कुण्डलिनी में आपको कराते हैं। जिस वक्त किसी को कैन्सर हो जाए या तो नानक साहब उसे ठीक कर सकते हैं या मोहम्मद साहब, और कोई नहीं कर सकता। क्योंकि हमारे यहाँ जो वॉइड हैं, हमारे यहाँ इस जगह में जो गैप है, जिसे हम भवसागर कहते हैं। भवसागर को पार करने वाले जो आदि गुरु हमारे दत्तात्रेय जिसे इन्हीं के सारे अपराध हैं, इनमें से किसी का भी तो नाम लिये बगैर आपकी जो वॉइड की तकलीफ़ है, जो कैन्सर को बनाता है। कैन्सर की पहचान है, यहाँ पर धकाधक धकाधक कुण्डलिनी मारती रहती है। आप ठीक नहीं हो सकते । मैं पूछना चाहती हूँ कितने यहाँ मुसलमान हैं और कितने यहाँ सिख है। एक चीज़ के लिये मोहम्मद साहब मना कर गये थे कि शराब को पीना | नहीं। उन्होंने कहा था कि शराब को छूये नहीं। वो बिचारे कुछ नहीं कह गये। उनके पीछे उनका ....(अस्पष्ट) ही कर दिया। उनकी क्या दशा कर दी हम जानते हैं। और आज जो मुसलमानों से पूछना चाहती हूँ कि शराब जरूर पियेंगे वो। चाहे मस्जिद में जरासा बच जाये तो बिगाड़ना शुरू कर देते है और शराब जरूर पीते हैं। इतना ही नहीं शराब पर कवितायें लिखी है। भगवान हो गये शराब उनके लिये। जब हम, जिन्होंने हमें इस सत्य का पथ बताया है, उसी पथ को तोड़ने पर हर समय अपने से ही नफ़रत करने पर जीते हैं, सारे संसार में नफ़रत को बाँटने की सोच रहे हैं। तब और क्या होगा! और इसलिये अहंकार है। इतना छुपा हुआ अहंकार हमारे अन्दर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर है। 7 Original Transcript : Hindi वो अहंकार आपको विशेष रूप से दिया गया था कि अहम् करें, मुझे करने का है। मुझे क्या करने का है ? किसे पाने का है? किस का कार्य मुझे करने का है ? इसकी मुझे शक्ति दें । एक ब्रश है, उसे क्या करने का है कि एक कलाकार के हाथ में पूरी तरह से हो जाने का है। समर्पण करने का है। उस समर्पण को तो छोड़ कर ही उस अहंकार में इतनी जड़त्व की सृष्टि करी हुई है, उसका ही रूप देख लीजिये। कभी अरब लोग अकड़े बैठे हुये हैं, कभी ये लोग अकड़े बैठे हैं, वो अकड़े बैठे हैं। सब के दिल खुलने वाले हैं । आपको पता होना चाहिये, कि किसी भी देश में किसी भी तरह की हानि होगी तो वो देश नहीं मिटेगा, लेकिन सारा संसार मिट जायेगा। इसी तरह से हर एक मनुष्य का है, हमारे अन्दर अगर कोई हानि होगी तो एक ही सृष्टि की रचना करने वाली वो शक्ति हमारे अन्दर और सब के अन्दर सूत्ररूप से ये बह रही है, इसमें धक्का लगेगा। और कौनसा ....(अस्पष्ट) आप चाहते हैं। अंधों के लिये कोई ..... पूरा नहीं। उनके लिये तो यही एक अजीब बात है कि एक औरत जात, वो भी एक हाऊस वाईफ़। वो कैसे ये बातें जानती है। और सीताजी कौन थी ? और राधाजी कौन थी ? और मेरी कौन थी ? कोई बड़ी सी बड़ी भारी विदुषियाँ थीं? आपको पहचानने के लिये पहले अपने लिये प्यार होना चाहिये। थोड़ा सा प्यार आपके अन्दर आ जाये, तो आपकी कुण्डलिनी हम ठिकाने कर देते हैं। क्योंकि ये प्रेमस्वरूपिणी है। इसका आपसे अत्यंत प्रेम है। और जब मनुष्य अत्यंत प्रेम किसी से करता है, तो वो क्या चाहता है? कि यही प्रेम सारे संसार में हो। क्योंकि प्रेम देने का अत्यानंद, वो चाहता है कि वो भी अपनायें, और वो भी अपनायें और वो भी अपनायें। सब कुछ हम जिस आनन्द के लिये कर रहे हैं, वो सिर्फ इस प्रेम के प्रकाश से ही है। इस प्रेम के प्रकाश के लिये आपको .... (अस्पष्ट) किया है, जैसे मैंने कहा था। आपका दीप जलाया जायेगा, लेकिन उसको के रखिये । बहत बड़े काम के लिये आप चुने गये है। आप दिव्य लोग है, छुपा हज़ारों। हज़ारों लोग चुने हैं। बाद में ये न कहना कि माँ ये नहीं बताया, वो नहीं बताया। सब चीज़ हम बताने के लिये तैयार हैं। और आपके स्थान पर बतायेंगे। और तरह का आपको संरक्षण देंगे। ये नहीं कि आप जंगलों में भाग जाईये, संसार से। कोई ज़रूरत नहीं। आपको कोई भी अॅबनॉर्मल बात करने की ज़रूरत नहीं । घर-गृहस्थी में, बाल-बच्चों में ही आपके अन्दर ये कार्य होने वाला है। और बहार आ गयी है और बहार की खबर आपको है नहीं। | फूलों की सजावट जरूर होनी चाहिये। आप लोग मेरे सामने बैठे है। मुरझी हुई कली जैसे मेरे सामने। मैं चाहती थी कि किस तरह से आपके हृदय में दौड़ कर के उसकी सुगंध मैं बहार घूमा दूँ। और फिर आप ही एक दूसरे को दे सकते हैं। अहाहा, अहाहा। सबसे सृष्टि में जो तेज़ कार्य हुआ है तो मनुष्य चीज़ है। सबसे सुन्दर वस्तु है मनुष्य। बहुत ही आल्हाददायी। और इस वाइब्रेशन्स को जानने वाली और इस प्रेम को जानने वाली, इस आनन्द को जानने वाली, अपनाने वाली, एक ही चीज़ है वो है मनुष्य। ऐसे सुन्दर मनुष्य के हृदय में मैं यही चाहती हूँ कि उस आनन्द के दर्शन हो। और फिर वो आनन्द से तादात्म्य पायें। आप लोग मेरी ओर हाथ कर के बैठिये। आप में से कुछ लोगों के हाथ में से ठण्डा ठण्डा सा, जैसे कि कोई एअर कंडिशनर से आता है, ऐसी ठण्डक सी आयेगी। सब लोग अपने ब्रेन की ओर देखें । बुद्धि में आप देखियेगा कि कोई विचार नहीं आ रहा है, विचार ही नहीं । लेकिन आप होश में हैं, पूरे होश में हैं। आप देखियेगा आपकी आँखें खुली हैं। ০ ---------------------- 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page0.txt Sarvajanik Karyakram Date 26th March 1974 : Place Mumbai Public Program Type Speech Language Hindi CONTENTS | Transcript | 02 - 08 Hindi English Marathi || Translation English Hindi Marathi 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page1.txt ORIGINAL TRANSCRIPT HINDI TALK आप लोग परमात्मा पर विश्वास करे या न करे, इससे परमात्मा का होना या न होना निर्भर नहीं है। अगर हम आपसे कितना भी कहे की परमात्मा है, और आप उसका विश्वास भी कर ले तो भी उससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं। चाहे आप अविश्वास करें, तो भी आप अज्ञान में ही अविश्वास कर रहे हैं और अगर आप विश्वास कर रहे हैं, तब भी आप अज्ञान में ही कर रहे हैं। उसको पाये बगैर विश्वास कर लेना भी अज्ञान ही होता है और उस पर अविश्वास कर लेना भी अज्ञान ही होता है। इसलिये जब मैं इस विषय पे बातचीत कर रही हूँ, आपको एक खुले दिमाग से, जैसे कि एक साइंटिस्ट होता है, एक शोधक होता है उनको कुछ भी पता नहीं है। उसकी प्रिकन्सीव्ड आइडिया नहीं है, जिससे पहले से कुछ कितनी किताबें मनुष्यों ने लिख मारी। एक अनन्त सागर सा है। उस में से न जाने कितने ही लोगों ने असत्य ही सोच के रखा है। इस तरह से आपको बैठना चाहिये। इस विषय पे न जाने लिखा है। लेकिन सत्य और असत्य की पहचान क्या है? सत्य की पहचान ये है, वो हर हालत .... (अस्पष्ट) हो जाता है और किसी भी कसौटी पर वो झूठा साबित नहीं होता है, वही सत्य है। जो हम आपके सामने अभी बातचीत करेंगे, या जो कुछ भी आपको बतायेंगे, इसको एक साइंटिस्ट की तरह सुनने का मतलब ही होता है कि आपके सामने हायपोथिसिस हम रख रहे हैं। एक विचार रख रहे हैं। उस विचार को बाद में हम सिद्ध कर के दिखा सकते हैं और जो यहाँ लोग पार बैठे हैं, जिन्होंने हमारे काम देखे हैं, वो जानते हैं कि ये बात सिद्ध होती है। लेकिन दिमाग खुला रखें । ये बहुत जरूरी है। क्योंकि आप में से बहुत से लोग ऐसे हैं कि इस विषय में बहुत कुछ पढ़ चुके हैं। सीखने को तो कुछ भी नहीं लगता है। आपके पास अगर थोड़ा सा पैसा हो या कुछ आपके चेले मदद करने के लिये तैयार हो, तो आप किताबों पे किताबें लिख के चले जा सकते हैं। और आपको सत्य की कोई भी खोज करना जरूरी नहीं । धर्म के मामले में पूछने वाला कौन है कि तुमने ऐसा क्यों लिखा ? धर्म पे तो चाहे जो भी चाहे बोल सकता है। हिटलर जैसा आदमी भी धर्म पे बोलता था और नेपोलियन जैसा आदमी भी बोलता था। क्योंकि (अस्पष्ट) में, उनको पकड़ने वाला कायदा अभी बना कहाँ है? जिनको जो चाहे धर्म के नाम पे बेचिये उनको जेल में डालने वाला कायदा बना कहाँ है? लेकिन आप सत्य के ही पुजारी हैं और आप सत्य को ही जानना चाहते है, तो हमारी भी बात पर यकीन आपको पूरी तरह से बिल्कुल नहीं करना चाहिये । जब तक आप ये न देखे कि जो हम कह रहे हैं वो वास्तविक ही है। आप मनुष्य हैं और अपनी में खड़े रहना चाहिये। ये नहीं की जो आपको कुछ कह गये, या लिख गये या बता दे वो आपमें छा जायें । ये मनुष्य का लक्षण बिल्कुल नहीं है । जो मनुष्य स्वतंत्रता के सीढ़ी पर खड़ा हो कर के परमात्मा को ये भी कहता है कि, 'तू नहीं है।' वो कहीं अधिक अच्छा है, उस आदमी से, परवशता में परमात्मा को कहता है कि, 'हाँ, तू है।' सहजयोग में परतंत्र आदमी के साथ हम कुछ नहीं कर सकते । कल मैंने आपसे यही कहा था, कि सहजयोग में आपकी अबोधिता, इनोसेन्स जरूरी है, लेकिन स्वतंत्रता अत्यंत आवश्यक है। और इसलिये स्वतंत्र बुद्धि से आप बैठे। न तो हमारा नकार हो और न ही हमारा स्वीकार हो, जब तक आप उसको पा न ले। ন 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page2.txt Original Transcript : Hindi भी हम बात कह रहे हैं वो जब तक आपका सेल्फ रियलाइझेशन नहीं हो जाता है तब तक पता ही जो कुछ नहीं हो सकती। आप जान ही नहीं सकते उस बात को, जिसे हम कह रहे हैं। जैसे कि आपका कनेक्शन नहीं लगता है, आप कोई भी टेलिफोन करिये उसका कोई अर्थ ही नहीं होता है। कम से कम, कम से कम मनुष्य को धर्म के बारे में जानना होता है, तो रियलाइझेशन कम से कम हो । उसके पहले मनुष्य योग्य नहीं है कि धर्म को जाने। जैसे अपने देश में पहले कहते थे कि किसी ब्राह्मणही धर्म को जाने। ब्राह्मण का अर्थ ही वो होता था कि जो रियलाइज्ड है। हर एक आदमी ब्राह्मण नहीं होता है। आज मैंने आपसे कहा था, कि मैं सृष्टि, स्रष्टा, ब्रह्मा आदि बातों की चर्चा करूंगी। पहले भी मैंने बताया हुआ है, कि जैसे कोई एक जीव होता है और उसके अन्दर जो कुछ भी उसी से पैदा होने वाला है उस सब का नक्शा होता है। उसी तरह आप एक ब्रह्म स्वरूप का विचार करे, कि एक ब्रह्म स्वरूप ही वर्तमान है। जिसका आदि नहीं और अंत नहीं। जो अनादि है ऐसा एक ब्रह्म बीज स्वरूप में घटित आप अपने चित्त में धरे। उस ब्रह्म की स्थिति एक साधारण जीव जैसी है, जो कि सृजन शक्ति से स्पंदित है। जैसे कि एक छोटा सा बीज होता है। उसके अन्दर उसकी जर्मिनेटिंग पॉवर या उसकी सृजन शक्ति होती है। उसी तरह से इस ब्रह्म में भी अपनी सृजन शक्ति है। और जब वो पहले ही फूट पड़ता है, पहले ही उसमें उसका स्पंदन होता है, पहले ही जब वो स्पंदित हो जाता है, उसी वक्त प्रणव की स्थापना होती है। उस शक्ति की स्थापना होती है। और वो शक्ति उस बीज से अलग हट कर के अपने अहंकार में स्थापित हो कर के सारी सृष्टि की रचना करती है और वो जो बीज है वो ईश्वर स्वरूप हो कर के और उसका खेल देख रहा है। जैसे कि एक टैलिविजन रखा हुआ है उसे वो देख रहा है। उसका पसन्द खेल आ गया तो वो देख रहा है और उसे नापसन्द आ गया तो वो ऑफ़ कर देता है। इसी ईश्वर को हमारे शास्त्रों में शिव के नाम से जानते हैं और उस शक्ति को शिबानी कहते हैं। जिसे हम महाशिव कर के पुकारते हैं। उसी को लोग ईश्वर, फ़ादर, गॉड, परमात्मा और जिसे हम शक्ति कहते हैं उसी को लोग होली घोस्ट, रूह आदि अनेक शब्दों से जानते हैं। यही शक्ति सारा सृजन करती है। यही शक्ति जब सृजन करने लग जाती है, उस वक्त ये अपने ढंग से सृजित होता है। उसका अपना एक ढंग होता है। मानव दशा में आने पर जिसे की एक शक्ति जैसे मैंने कल बताया था, कि एक जड़ तत्त्व है और एक चैतन्य तत्त्व है। दो तत्त्वों से ये सारी सृष्टि बनती है। चैतन्य त्त्व जब जड़ त्त्व से काम करता है, तब ये सृष्टि का सृजन होता है और सारी सृष्टि तैयार होती है। करते करते मनुष्य दशा पे हम आ जाते हैं। विस्तृत रूप से तो मैं बहुत बार बता चुकी हूँ। लेकिन आज विशेषत: कुण्डलिनी पर आना है। इसलिये मैं जरा जल्दी में वहाँ पहुँचना चाहती हूँ। मनुष्य में ये जब जड़ शक्ति, छोटे से बच्चे के रूप में माँ के गर्भ में दो-तीन महिने की दशा में पहिली मर्तबा स्पंदित होती है, उस वक्त उसके हृदय में जो पहला स्पंदन होता है, वो पहला स्पंदन उस व्यक्ति के हृदय में होता है, वो ईश्वर का होता है। इसी को हम आत्मा कहते हैं। परमात्मा आत्मास्वरूप हमारे हृदय में पहली बार और शक्ति जो है वो हमारे सर के इस तालु प्रदेश से चीर कर के अन्दर हमारे पृष्ठ भाग में एक स्पाइनल कॉर्ड है, जो रीढ़ की हड्डी है, उस से गुज़र के और त्रिकोणाकार उस अस्थि में, अस्थिपूर्ण में जा कर के बैठती है। ये बैठती है या नहीं, वहाँ होती है या नहीं? उसकी क्या स्थिति है, वास्तविकता है या नहीं? आप कह रही थी तो माना। बिल्कुल न मानिये। लेकिन मैं आपको दिखा सकती हूँ। आप चाहे पार हो न हो, अगर आपके पास आँखें हैं आप अँधे नहीं हैं, तो आप देख सकते हैं कि वहाँ पर कुण्डलिनी के नाम से स्थित है और जब कोई मेरे पैर पे आता है तो फौरन 3 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page3.txt Original Transcript : Hindi वहाँ पे स्पंदन होने लगता है, जहाँ पर की त्रिकोणाकार अस्थि है। त्रिकोणाकार अस्थि में स्पंदन होने की कोई बात नहीं है क्योंकि वहाँ हृदय नहीं है। वहाँ पे हृदय नहीं है, लेकिन वहाँ आपको दिखाई देता है कि उस आदमी का अगर कोई कपड़ा पहने हो , तो वो ऊपर-नीचे हिलता है और कभी कभी बहुत जोर से हिलता है । उसके बाद आप जब देखते है, कि जब वो चढ़ती है, ऊपर में, ऊपर में चढ़ते वक्त वो किसी किसी जगह रुकते हुए, स्पंदित होती है, और किसी-किसी जगह इसका स्पंदन इतने जोर से दिखाई देता है, कि जैसे हृदय चक्र जहाँ पीछे में है, वहाँ पर आपको ऐसा लगता है कि कपड़ा उठ रहा है, गिर रहा है, कंपड़ा उठ रहा है, गिर रहा है। इसलिये हम लोगों ने प्रयोग किये हैं, एक्स्परिमेंट किये हैं, जो लोगों ने अपने आँखों से साक्षात देखा हुआ है। ये लोग कहते हैं कि, कुण्डलिनी कोई चीज़ ही नहीं होती। कुण्डलिनी पे विश्वास ही नहीं करते हैं। इनको चाहिये कि एक मर्तबा आ कर देखें कि कुण्डलिनी नाम की चीज़ आपके अन्दर में है, शक्ति नाम की चीज़ अपने अन्दर में है और वो आपके त्रिकोणाकार अस्थि में है। इधर-उधर नहीं है। इसका सामने साक्षात हो सकता है। आप इन आँखों से, नेकेड आई से आप देख सकते हैं, कि कुण्डलिनी है। उसके बाद आप ये भी देखते हैं, कि धीरे-धीरे आपकी पीठ में ऐसा लगता है कि कभी कभी की चीज़ बह रही है। किसी किसी को तो सिर्फ हमें देखते ही साथ फटाकू के साथ ऐसा लगता है कि कोई भी ... (अस्पष्ट)। या उनके पूर्वजन्मों के पुण्यों का तरीका है । जो उन्होंने धंदे इकट्ठे किये हैं कि एकदम से साक्षात् हो जाते हैं, खट् से कुण्डलिनी खोल देते हैं। और किसी किसी में रुकावट सी लगती है। धीरे चढ़ी, नीचे चढ़ गयी, किसी को थोड़ी सी गर्मी महसूस हो गयी। इसकी वजह ये है कि आपके अन्दर जो कुण्डलिनी का मार्ग है, वो जैसे मैं आपको दिखा रही हूँ, इस तरह से .... प्रतीक है। जैसे कि एक इधर से गिर सकते हैं, एक इधर से गिर सकते हैं। ये देख रहे हैं न आप! ये दो और शक्तियाँ हमारे अन्दर हैं जो इड़ा और पिंगला हैं। इसके बारे में मैं कल बताऊंगी। ये किसी न किसी कारण से अपनी तरफ इस मार्ग से खींच लेती है। और इसीलिये ये मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और कुण्डलिनी ऊपर चढ़ नहीं पाती वो जा कर रुक जाती है, इस जगह जहाँ मार्ग रुकता है। ये कुण्डलिनी साक्षात् चैतन्य-स्वरूपिणी है। चैतन्य का अर्थ मैंने कल आपको बताया था कि चैतन्य सब जानता है। चैतन्य सब पहचानता है। इतना ही नहीं लेकिन संसार का सारा सृजन चैतन्य से होता है। और चैतन्य जो | है प्रेममय है। ये कुण्डलिनी भी प्रेमस्वरूपिणी आपकी अपनी माँ है। ये जरासा फर्क आ जाता है। जो आपकी अपनी माँ है, उसका और कोई बेटा नहीं है । वो आपके बारे में सबकुछ जानती है। जैसे कोई टेपरेकॉर्डर अपने अन्दर सब कुछ लिखे हुए है कि इस बच्चे में क्या दोष है? इसे क्या तकलीफ़ है? इसके शरीर में कौनसी पीडा है ? में कोई इसकी कौनसी वेदना है? इसने क्या क्या तकलीफ़ उठाई? ये साक्षात् में है। आजकल के मॉडर्न टाइम अगर कुण्डलिनी की बात करे तो लोग विश्वास नहीं करते। लेकिन इसी टाइम में जब कि आप साइन्स की इतनी बड़ी हज़ार पताका लगा कर घूम रहे हैं, तो क्षण आ गया है कि आपको फिर से धर्म के रास्ते की ओर अपनी नज़र उठा के देखना पड़ेगा। क्योंकि साइन्स समझ चुका है कि अभी तक हमने कुछ जाना ही नहीं । मेडिकल साइन्स में, कैन्सर, कैन्सर समझ ही नहीं आ रहे है किसी को क्या है। कैन्सर क्या चीज़ है किसी को समझ ही नहीं आ रहा है । जो लोग साइन्स की नाम पर डंके की चोट पर बड़ी शान से अहंकार दिखाते हैं, वो मुझे बता दें कि कैन्सर क्यों है? बड़े बड़े डॉक्टर होते हैं, वो नहीं बता पाएंगे । मैं बताती हूँ कि कैन्सर यही जो आपने कहा था कि खिंचाव, 4 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page4.txt Original Transcript : Hindi सिम्परथैटिक नर्वस सिस्टीम के खिंचाव से, ओवरोंक्टिविटी से होता है। और इसका इलाज सहजयोग के सिवाय कोई और है ही नहीं। आज जो मैं कह रही हूँ दस साल के बाद शायद लोग मान जायें । पर न जाने कितने लोग कैन्सर से खतम हो जाये। संसार अजीब है। कोई चीज़ का आप पता लगाईये। तो मानव का दिमाग ऐसा होता है, जो पता लगाता है, उसी को फाँसी चढ़ा दें। उसकी बात मत सुनो। लेकिन मरने के बाद मंदिर बनाएंगे और उसका गौरव करेंगे। आज मैं जिंदा आपके सामने बता रही हूँ कि कैन्सर किसी बीमारी का नाम है, जिसे मैं कहती हूँ कि ओवरोंक्टिविटी ऑफ द सिम्पथेटिक नर्वस सिस्टीम तो ये डॉक्टर लोग सुनने के लिए तैयार नहीं। लेकिन एकाध डॉक्टर कैन्सर से बीमार पड़ जाए तो माताजी के शरण में आते हैं। हम तो रियलाइझेशन के पीछे में है, कैन्सर के पीछे में नहीं। लेकिन डॉक्टर लोग अगर आँख खोल के देखे और इसको समझने की कोशिश करें और इतना विचार न करें कि उनके पैसों का क्या होगा। तो वो स्वयं ही इस बीमारी का इलाज कर सकते हैं और लोगों को ठीक कर सकते हैं । इसलिये साइन्स से आप कुण्डलिनी के बारे में अगर पूछना चाहते हैं, तो मैं ये कहँगी कि आपके आँखों पर तो आपका विश्वास है या नहीं। अगर इतना विश्वास है तो आपकी आँखों से देख लीजिये कि किसी की पीठ की रीढ़ की हड्डी में अगर स्पंदन हो रहा है तो आखिर वो क्या है? और वो होने के बाद, आपके पूरे होश में अगर निर्विचारिता स्थापित हो रही है तो आखिर ऐसी कौन सी चीज़़ है कि जिससे आप निर्विचार हो सकते हैं । साइकोलॉजिस्ट कितने भी बड़े हो उनसे पूछ लीजिये कि आप निर्विचारिता हमारे अन्दर स्थापित कर सकते हैं ? आपका मन खिंचाव कर ले , लेकिन आपके होश में ही न बात साइलेन्स की और अन्दर शान्ति की बात है, वो अगर कर के दिखा दे तो हम मान जाएंगे कि आपका साइन्स बहुत बड़ा है। अन्दर की शान्ति आये बगैर हम बाहर की शान्ति ला नहीं सकते। लेकिन सारी साइकोलॉजी की किताबें खोल के आप सुन लीजिये और इन्ही साइकोलॉजिस्ट के पास जा के देखिये कि क्या ये शान्त हैं? ये क्या हमारा इलाज करेंगे! जो स्वयं ही इसके शिकार है, जिसके हम हैं। लेकिन कितनी भी बात कहँ, कैसे कैसे समझाऊँ कि बचो, कलियुग में ही बड़ा भारी उद्धार होने का समा आ गया है। और उसी के साथ पूरे ..... का भी पूरा इंतजाम है, क्योंकि जो ईश्वर सुपरवाईजर कर के बैठे हुए हैं, जो सर्वसाक्षी हैं, वो आपका स्विच ऑफ करने के लिये बड़े लालायित हैं। देख रहे हैं, कि खेल बनेगा तो जीत हमारी है और नहीं तो संहार है । आप देख ही रहे हैं कि संसार में किस तरह की चीज़ें आज खड़ी हो रही है। युद्ध है, गरीबी है, रुग्णावस्थायें हैं, देखा नहीं जाता। और इसका कोई ये कल्कि का जमाना है! और इस भी इलाज मनुष्य टाल नहीं सकता। कोई कहता है कि कम्युनिझम लाओ, कोई कहता है कि सोशलिझम लाओ। कोई कहता है कि फलाना लिझम लाओ। ये सब चलाने के लिये इस परम आनन्द की उपलब्धि हये बगैर, उन तारों को छेड़ने की शक्ति लिये बगैर आप कभी भी आनन्द पा ही नहीं सकते हैं और संतुष्ट तो आप हो ही नहीं सकते हैं । संतोष को परमात्मा के चरणों में मिल सकता है। लेकिन मैं जब परमात्मा की बात करती हूँ तो 'अहाहा, मनुष्य माताजी आ गयी रास्ते पर।' वहाँ तक तो लोग ठीक ठीक चलते हैं, जब मैं साइन्स की बात करती हूँ, पर जैसे ही मैंने परमात्मा की बात की, कि गये। इतना अहंकार है आदमी में। कितना अहंकारी हो गया है, अपने को समझता क्या है। ये परमात्मा जिसने हमें बनाया, इसने सारी सृष्टि की रचना की उसको हम चुनौती दे रहे हैं! आप है किस खेत की मूली। कल उखाड़ के फेंक दिये जाओगे। परमात्मा के नाम में अधर्म देख रहे हैं। सेक्स की बातें अगर 5 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page5.txt Original Transcript : Hindi परमात्मा के नाम में करियेगा तो आप बड़े धम्मात्मा कहलाये जाते हैं। कलियुग की भी हद होती है । परिसीमा के पाप में हम लोग वाकई डूब चुके है। साइन्स से अगर आप पाप धो कर दिखा सके, साइन्स से अगर आप प्यार बना कर दिखा सके, तो मैं साइन्स के सामने हार मानूंगी। लेकिन हमारा भाषण भी एक भाषण मात्र रह जाये, और कोई अनुभूति आपको न मिले, आप अगर हमारे रहते हुए भी कुछ न पाये, तो हमारा आना भी व्यर्थ हुआ और कहना भी व्यर्थ हुआ। ऐसा कलियुग का घोर, ऐसा अंध:कार हमारे सर पे छाया हुआ है, कि हम अपने आगे किसी को कुछ एक पाँव के धूल के बराबर भी ये सारी सृष्टि नहीं है। मेरी बात का आपको मैं यकीन दिलाना नहीं चाहती हैँ। लेकिन एक दिन इसका सोचता ही नहीं । | आपको मैं साक्षात् बनाऊंगी। पहले अपनी तैयारी कर लें। आज कल के नौजवान लड़के और आज कल का जो समाज तैयार हो रहा है, उसमें उतना ही बताया जाये। उनके सर में ये चीज़ नहीं घुसने वाली। इसका कारण ये है कि धर्म के नाम पे महा अधर्म खड़ा कर दिया। कुण्डलिनी की तो बात किसी ने की ही नहीं। कौन करता कुण्डलिनी की बात उस जमाने में। बिचारों ने कुछ कहा ही नहीं, उस पर भी क्रॉस पे चढ़ा दिया। कुण्डलिनी अन्दर साक्षात् है और उसका साक्षात् हो सकता है। और अगर आपको देखना हो तो आप आईये। और अगर नहीं देखना है, और अगर नहीं जानना है तो अज्ञान की जो जो तकलीफ़ें हैं उसे सहना ही होगा। पर एक विचार तो करना ही है कि आखिर हम कर क्या रहे हैं? हम दौड़ कहाँ रहे हैं? क्या पा रहे हैं? अपने ही अन्दर, अपने ही उस ....(अस्पष्ट) के अन्दर सारे देवता बसे हुए हैं। अब ये कहते ही, दिमाग में नहीं जाता, कि ऐसे कैसे माताजी कह रही हैं कि हमारे अन्दर देवता बसे हुए हैं? उसका भी आपको मैं प्रमाण देती हूँ। एक साहब थे, उनकी शिकायत है। वो हमारे पास आते हैं। बहुत दर्द होता है। एक दूसरी आती है, हमें बच्चे नहीं होते है। हमने कहा, 'अच्छा! तुम हमारी ओर हाथ करो।' देखते हैं कि कुण्डलिनी उनके स्वाधिष्ठान चक्र में बैठी हुई है। एक छोटा बच्चा बता देगा, कि यहाँ पर इस उँगली में हमें गर्मी आ रही है। जितने भी लोग बैठे हैं, आप लोग देखें, वो आँख बंद कर के बता दें कि इसी उँगली पर, इसी अंगुली पर हमें गर्मी आ रही है। इससे बढ़ के साइन्स और क्या हो सकता है कि सब के सब एक ही चीज़़ बतायें की इसमें हमें गर्मी आ रही है। मैं तुमसे नहीं बता रही हूँ। इससे पूछा कि साब, आपको बीमारी क्या है? 'हमारे पेट में बहुत दर्द होता है, तो किसी ने कहा हमें की शिकायत रहती है और किसी ने कहा हमारे बच्चे नहीं है।' सारे के सारे अेऑर्टिक प्लेक्सस जिसे कहते हैं, जो स्वाधिष्ठान चक्र से चालित है उसकी बिमारियाँ हैं और वो इस उँगली पर आप महसूस कर सकते हैं। अब इससे और ज्यादा प्रमाण में आपको क्या दूं! जो दो साल का बच्चा भी यही अँगूठा दिखायेगा और सब लोग यही अँगूठा दिखा कर कहेंगे, 'माँ, यहाँ पर।' और फिर जब मैं उस आदमी से कहती हैं कि, 'अच्छा तुम ब्रह्मदेव का और सरस्वती का नाम लो।' वैसे लेते ही वो खट्कन खतम हो गया और कहता है कि, 'माँ, मेरी तबियत ठीक हो गयी।' अब इससे भी ज्यादा कोई प्रमाण चाहिये। साक्षात् ब्रह्मदेव और सरस्वती वहाँ बैठे ही हये हैं। अगर नहीं बैठे हैं तो काम कैसे हो गये! और किसी भी नाम लीजियेगा होने नहीं वाला काम। अब इससे ज़्यादा और क्या प्रमाण देना चाहिये आप लोगों के सामने। इसको बुद्धिवादी कहे कि बुद्ढिवादी कहे, जो देखते हुये भी उस चीज़ को नहीं मानते। जिसके मूलाधार चक्र पे तकलीफ़ हो उसको यहाँ (हात) गर्मी आती है। अगर उसको बहुत जोर की बाधा हो, बाधा जिसे कहते है रुकावट या किसी किसी में भूतबाधा पर बैठता है, तब बहत जोर की गर्मी आती है, यहाँ 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page6.txt Original Transcript : Hindi तक कि यहाँ ब्लिस्टर्स आ जाते हैं। बहुत से लोग अपने को भगवान आदि कह कर घूम रहे हैं, इनको तो छोड़िये, पर उनके शिष्यों पर भी, ब्लिस्टर्स आ जाते हैं हाथ में । हाथ जल गये हम लोगों के। उँगलियाँ जल गयी। सब की एक साथ उँगलियाँ जल गयी है। लेकिन .....(अस्पष्ट) दो साल की पार ही वो पैदा हुई है। वो भागती है सब लोगों से। एक ही उँगली पर सब के ही जलन आती है, एक ही उँगली पर सबसे जलन आ रही है, तो उसके आज्ञा चक्र पर पकड़ है। आज्ञा चक्र पे जो क्रॉस है उसपे ईसामसीह को लटका दिया और ईसामसीह वहाँ हैं, चाहे आप ईसाई हो, चाहे नहीं। इसका साक्षात् हमें आता है। बड़े आये हिन्दू बनने वाले और बड़े आये ईसाई बनने वाले। सब से द्वेष करने के तरीके सीखते हैं। कोई उनका तरीका सीखा है । सबके यहाँ पर अन्दर ईसामसीह का स्थान है और वही गणेशजी हैं। यदि साक्षात् मनुष्य स्वरूप प्रणव, इसकी पहचान में भी गणेशजी के भी बाप वही थे और ईसा के भी बाप हैं। लेकिन अगर कोई पागल आदमी हो, या जिसे भूतबाधा हो, जो मेंटली के रिसिपिएन्ट हो और वो अगर हमारे सामने आ जाये तब हम जो उनको मदद कर रहे हैं या उनके आज्ञा चक्र को छुड़ा रहे हैं। हम उससे अगर कहें कि तुम ईसामसीह का नाम लों। जीजस क्राईस्ट का नाम लो, खट् से खुल जायेगा आज्ञा। अब हम कैसे जानते हैं? | ये तो कोई प्रश्न नहीं हुआ, क्योंकि हम जानते हैं और वो होने पर भी, इस पर भी अगर आप लोग विश्वास नहीं करेंगे, की अलग अलग अपने चक्रों पर अलग अलग देवताओं का स्थान पहले से ही आदिशक्ति ने बनाया हुआ है। जब आप का नामोनिशान भी नहीं था और जो लोग आपस में लड़ रहे हैं, उनको भी पता होना चाहिये, कि आप आपस में जिनके लिये लड़ रहे है वो एक है, जैसे हम मोहम्मद साहब और गुरुनानक के लिये है कहते हैं। मोहम्मद साहब और गुरुनानक दोनो एक आदमी थे। उनकी एक पहचान थी। नानक जी के जीवन में ही हम आपको बता दें, की एक बार नानक जी लेटे थे, तो लोगों ने कहा कि, 'आप क्या मक्का की तरफ़, उधर में काबा है, उधर में आप अपने पाँव कर के क्यों लेटे हैं?' उन्होंने कहा, 'अच्छा, मैं पैर कर लेता, ये है काबा घूम गया।' काबा क्या है? मोहम्मद साहब की पाँव की धूल है और वही नानक साहब की भी है। दोनों एक ही आदमी है और उसकी पहचान हम कुण्डलिनी में आपको कराते हैं। जिस वक्त किसी को कैन्सर हो जाए या तो नानक साहब उसे ठीक कर सकते हैं या मोहम्मद साहब, और कोई नहीं कर सकता। क्योंकि हमारे यहाँ जो वॉइड हैं, हमारे यहाँ इस जगह में जो गैप है, जिसे हम भवसागर कहते हैं। भवसागर को पार करने वाले जो आदि गुरु हमारे दत्तात्रेय जिसे इन्हीं के सारे अपराध हैं, इनमें से किसी का भी तो नाम लिये बगैर आपकी जो वॉइड की तकलीफ़ है, जो कैन्सर को बनाता है। कैन्सर की पहचान है, यहाँ पर धकाधक धकाधक कुण्डलिनी मारती रहती है। आप ठीक नहीं हो सकते । मैं पूछना चाहती हूँ कितने यहाँ मुसलमान हैं और कितने यहाँ सिख है। एक चीज़ के लिये मोहम्मद साहब मना कर गये थे कि शराब को पीना | नहीं। उन्होंने कहा था कि शराब को छूये नहीं। वो बिचारे कुछ नहीं कह गये। उनके पीछे उनका ....(अस्पष्ट) ही कर दिया। उनकी क्या दशा कर दी हम जानते हैं। और आज जो मुसलमानों से पूछना चाहती हूँ कि शराब जरूर पियेंगे वो। चाहे मस्जिद में जरासा बच जाये तो बिगाड़ना शुरू कर देते है और शराब जरूर पीते हैं। इतना ही नहीं शराब पर कवितायें लिखी है। भगवान हो गये शराब उनके लिये। जब हम, जिन्होंने हमें इस सत्य का पथ बताया है, उसी पथ को तोड़ने पर हर समय अपने से ही नफ़रत करने पर जीते हैं, सारे संसार में नफ़रत को बाँटने की सोच रहे हैं। तब और क्या होगा! और इसलिये अहंकार है। इतना छुपा हुआ अहंकार हमारे अन्दर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर है। 7 19740326_Sarvajanik Karyakram_Mumbai.pdf-page7.txt Original Transcript : Hindi वो अहंकार आपको विशेष रूप से दिया गया था कि अहम् करें, मुझे करने का है। मुझे क्या करने का है ? किसे पाने का है? किस का कार्य मुझे करने का है ? इसकी मुझे शक्ति दें । एक ब्रश है, उसे क्या करने का है कि एक कलाकार के हाथ में पूरी तरह से हो जाने का है। समर्पण करने का है। उस समर्पण को तो छोड़ कर ही उस अहंकार में इतनी जड़त्व की सृष्टि करी हुई है, उसका ही रूप देख लीजिये। कभी अरब लोग अकड़े बैठे हुये हैं, कभी ये लोग अकड़े बैठे हैं, वो अकड़े बैठे हैं। सब के दिल खुलने वाले हैं । आपको पता होना चाहिये, कि किसी भी देश में किसी भी तरह की हानि होगी तो वो देश नहीं मिटेगा, लेकिन सारा संसार मिट जायेगा। इसी तरह से हर एक मनुष्य का है, हमारे अन्दर अगर कोई हानि होगी तो एक ही सृष्टि की रचना करने वाली वो शक्ति हमारे अन्दर और सब के अन्दर सूत्ररूप से ये बह रही है, इसमें धक्का लगेगा। और कौनसा ....(अस्पष्ट) आप चाहते हैं। अंधों के लिये कोई ..... पूरा नहीं। उनके लिये तो यही एक अजीब बात है कि एक औरत जात, वो भी एक हाऊस वाईफ़। वो कैसे ये बातें जानती है। और सीताजी कौन थी ? और राधाजी कौन थी ? और मेरी कौन थी ? कोई बड़ी सी बड़ी भारी विदुषियाँ थीं? आपको पहचानने के लिये पहले अपने लिये प्यार होना चाहिये। थोड़ा सा प्यार आपके अन्दर आ जाये, तो आपकी कुण्डलिनी हम ठिकाने कर देते हैं। क्योंकि ये प्रेमस्वरूपिणी है। इसका आपसे अत्यंत प्रेम है। और जब मनुष्य अत्यंत प्रेम किसी से करता है, तो वो क्या चाहता है? कि यही प्रेम सारे संसार में हो। क्योंकि प्रेम देने का अत्यानंद, वो चाहता है कि वो भी अपनायें, और वो भी अपनायें और वो भी अपनायें। सब कुछ हम जिस आनन्द के लिये कर रहे हैं, वो सिर्फ इस प्रेम के प्रकाश से ही है। इस प्रेम के प्रकाश के लिये आपको .... (अस्पष्ट) किया है, जैसे मैंने कहा था। आपका दीप जलाया जायेगा, लेकिन उसको के रखिये । बहत बड़े काम के लिये आप चुने गये है। आप दिव्य लोग है, छुपा हज़ारों। हज़ारों लोग चुने हैं। बाद में ये न कहना कि माँ ये नहीं बताया, वो नहीं बताया। सब चीज़ हम बताने के लिये तैयार हैं। और आपके स्थान पर बतायेंगे। और तरह का आपको संरक्षण देंगे। ये नहीं कि आप जंगलों में भाग जाईये, संसार से। कोई ज़रूरत नहीं। आपको कोई भी अॅबनॉर्मल बात करने की ज़रूरत नहीं । घर-गृहस्थी में, बाल-बच्चों में ही आपके अन्दर ये कार्य होने वाला है। और बहार आ गयी है और बहार की खबर आपको है नहीं। | फूलों की सजावट जरूर होनी चाहिये। आप लोग मेरे सामने बैठे है। मुरझी हुई कली जैसे मेरे सामने। मैं चाहती थी कि किस तरह से आपके हृदय में दौड़ कर के उसकी सुगंध मैं बहार घूमा दूँ। और फिर आप ही एक दूसरे को दे सकते हैं। अहाहा, अहाहा। सबसे सृष्टि में जो तेज़ कार्य हुआ है तो मनुष्य चीज़ है। सबसे सुन्दर वस्तु है मनुष्य। बहुत ही आल्हाददायी। और इस वाइब्रेशन्स को जानने वाली और इस प्रेम को जानने वाली, इस आनन्द को जानने वाली, अपनाने वाली, एक ही चीज़ है वो है मनुष्य। ऐसे सुन्दर मनुष्य के हृदय में मैं यही चाहती हूँ कि उस आनन्द के दर्शन हो। और फिर वो आनन्द से तादात्म्य पायें। आप लोग मेरी ओर हाथ कर के बैठिये। आप में से कुछ लोगों के हाथ में से ठण्डा ठण्डा सा, जैसे कि कोई एअर कंडिशनर से आता है, ऐसी ठण्डक सी आयेगी। सब लोग अपने ब्रेन की ओर देखें । बुद्धि में आप देखियेगा कि कोई विचार नहीं आ रहा है, विचार ही नहीं । लेकिन आप होश में हैं, पूरे होश में हैं। आप देखियेगा आपकी आँखें खुली हैं। ০